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*_२ अप्पमादवग्गो_*
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*_अप्पमादो अमत पदं पमादो मच्चुनो पदं।_*
*_अप्पमत्ता न मीयन्ति ये पमत्ता यथा मत्ता ।।१।।_*
*_अप्रमादी मृत होत नाहीत, प्रमादी मृतवत असतात. ।।१।।_*
*_एवं विसेसतो ञत्त्वा अप्पमादम्हि पण्डिता।_*
*_अप्पमादे पमोदन्ति अरियानं गोचरे रता ।।२।।_*
*_अप्रमादात आर्याचरणी / सदाचरणी प्रसन्न-मग्न असतात. ।।२।।_*
*_ते झायिनो साततिका निच्चं दळ्ह परक्कमा ।_*
*_फुसन्ति धीरा निब्बाणं योगक्खेमं अनुत्तरं ।।३।।_*
*_ध्यानमग्न, जागृत, दृढ पराक्रमी, धीर मानव,_*
*_यत्न-सिद्ध कल्याण, निर्वाण प्राप्त करतो.।।३।।_*
*_उट्ठानवतो सतिमतो सुचिकम्मस्स
निसम्मकारिनो ।_*
*_सञ्ञतस्स च धम्मजीविनो अप्पमतस्स
यसोभिवड्ढति ।।४।।_*
*_उद्योगी, जागृत, सुकर्मी, विचारवंत, संयमाने व सदाचाराने,_*
*_धम्मा प्रमाणे जगणाऱ्या, अप्रमादी मानवाची
यशवृद्धी होते.।।४।।_*
*_उट्ठानेन'प्पमादेन सञ्ञमेन दमेन च ।_*
*_दीपं कयिराथ मेधावी यं ओघो नाभिकीरति ।।५।।_*
*_प्रज्ञावान असे बेट उभारतो, ज्यास पुर बुडवू शकत नाही.।।५।।_*
*_पमादमनुयुञ्जन्ति बाला दुम्मेधिनो जना ।_*
*_अप्पमादञ्च मेधावी धनं सेट्ठ'च रक्खति ।।६।।_*
*_अज्ञानी, दूर्बूद्ध मनुष्य प्रमाद करतात,_*
*_प्रज्ञावान श्रेष्ठधनवत अप्रमादाचे रक्षण करतात.।।६।।_*
*_मा पमादमनुयुञ्जेथ मा कामरतिसन्थवं ।_*
*_अप्पमत्तो हि झायन्तो पप्पोति विपुलं सुखं ।।७।।_*
*_प्रमाद कार्यरत असु नका, काम-रति च्या संसर्गात राहु नका,_*
*_अप्रमादी ध्यानमग्न विपुल सुख मिळवितो.।।७।।_*
*_पमादं अप्पमादेन यदा नुदति पण्डितो।_*
*_पञ्ञापासादमारूय्ह असोको सोकिनिं पजं ।_*
*_पब्बतट्ठ व भुम्मट्ठो धीरो बाले अवेक्खति ।।८।।_*
*_जेव्हा ज्ञानी मानव प्रमादाला अप्रमादाने दूर घालवितो तेंव्हा तो,_*
*_प्रज्ञा-महालावर आरूढ शोकरहीत मानव शोकग्रस्ताला असे पाहतो, जसे_*
*_पर्वतावर उभा धीर माणूस जमिनीवरच्या अज्ञानी माणसाला पाहतो.।।८।।_*
*_अप्पमत्तो पमत्तेसु सुत्तेसू बहुजागरो ।_*
*_अबलस्सं'व सीघस्सो हित्वा याति सुमेधसो
।।९।।_*
*_अप्रमादी प्रमाद्याच्या, सदाजागृत झोपलेल्याच्या, असा पुढे जातो, जसा_*
*_वेगवान घोडा अशक्तताच्या पुढे जातो.।।९।।_*
*_अप्पमादेन मधवा देवानं सेट्ठतं गतो ।_*
*_अप्पमादं पसंसन्ति पमादो गरहितो सदा ।।१०।।_*
*_अप्रमादाने इन्द्र देवतांमध्ये श्रेष्ठ झाला, म्हणूनच_*
*_अप्रमाद्याची प्रशंसा होते, प्रमाद्याची निंदा होते.।।१०।।_*
*_अप्पमादरतो भिक्खु पमादे भयदस्सि वा ।_*
*_सञ्ञोजनं अणुं थुलं डहं अग्गीव गच्छति ।।११।।_*
*_प्रमादास घाबरणारा, अप्रमादी भिक्षु_*
*_लहान-मोठ्या बंधनांना अग्नी सारखे जाळतो.।।११।।_*
*_अप्पमादरतो भिक्खु पमादे भयदस्सि वा ।_*
*_अभब्बो परिहाणाय निब्बणस्सेव सन्तिके ।।१२।।_*
*_प्रमादास घाबरणार्या, अप्रमादी भिक्षुची_*
*_हानी होणे अशक्य, तो निर्वाणाच्या
जवळ आहे.।।१२।।_*
*प्रतिज्ञा आपण करूया*
*१) जीवसृष्टी आहे असीम; ती भवसागरपार नेण्याची*
*२) आपणांत दोष असंख्य; ते नष्ट करण्याची*
*३) आहेत सत्य अनंत, पूर्ण आकलण्याची*
*४) भगवान बुद्धांचा अतुल्य मार्ग, तो संपूर्ण साध्य करण्याची*
*डॉ बाबासाहेब आंबेडकर*
*बुद्ध आणि त्याचा धम्म*
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*_सर्व प्राणी सुखी होवोत, सर्वांचे कल्याण होवो, सर्वांना हिताचा मार्ग सापडो, कोणालाही दुःख न होवो, सर्वांचे मंङ्गल हो!!_*
*_साधु साधु साधु_*
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