Thursday, 1 July 2021

अप्पमादवग्गो

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 *_धम्मपद_*

*_२ अप्पमादवग्गो_*

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*_अप्पमादो अमत पदं पमादो मच्चुनो पदं।_*

*_अप्पमत्ता न मीयन्ति ये पमत्ता यथा मत्ता ।।१।।_*

 *_अप्रमाद अमृत स्थान आहे, प्रमाद / बेपर्वा मृत्यूचे स्थान आहे,_*

*_अप्रमादी मृत होत नाहीत, प्रमादी मृतवत असतात. ।।१।।_*

 

*_एवं विसेसतो ञत्त्वा अप्पमादम्हि पण्डिता।_*

*_अप्पमादे पमोदन्ति अरियानं गोचरे रता ।।२।।_*

 *_अप्रमादाची ही विषेषता ज्ञानी जन जाणतात की,_*

*_अप्रमादात आर्याचरणी / सदाचरणी प्रसन्न-मग्न असतात. ।।२।।_*

 

 

*_ते झायिनो साततिका निच्चं दळ्ह परक्कमा ।_*

*_फुसन्ति धीरा निब्बाणं योगक्खेमं अनुत्तरं ।।३।।_*

 

*_ध्यानमग्न, जागृत, दृढ पराक्रमी, धीर मानव,_*

*_यत्न-सिद्ध कल्याण, निर्वाण प्राप्त करतो.।।३।।_*

 

*_उट्ठानवतो सतिमतो सुचिकम्मस्स निसम्मकारिनो ।_*

*_सञ्ञतस्स च धम्मजीविनो अप्पमतस्स यसोभिवड्ढति ।।४।।_*

 

*_उद्योगी, जागृत, सुकर्मी, विचारवंत, संयमाने व सदाचाराने,_*

*_धम्मा प्रमाणे जगणाऱ्या, अप्रमादी मानवाची यशवृद्धी होते.।।४।।_*

 

 

*_उट्ठानेन'प्पमादेन सञ्ञमेन दमेन च ।_*

*_दीपं कयिराथ मेधावी यं ओघो नाभिकीरति ।।५।।_*

 *_अप्रमादी मनुष्य उद्योगाने, संयमाने, शक्तीने,_*

*_प्रज्ञावान असे बेट उभारतो, ज्यास पुर बुडवू शकत नाही.।।५।।_*

 

*_पमादमनुयुञ्जन्ति बाला दुम्मेधिनो जना ।_*

*_अप्पमादञ्च मेधावी धनं सेट्ठ'च रक्खति ।।६।।_*

*_अज्ञानी, दूर्बूद्ध मनुष्य प्रमाद करतात,_*

*_प्रज्ञावान श्रेष्ठधनवत अप्रमादाचे रक्षण करतात.।।६।।_*

 

*_मा पमादमनुयुञ्जेथ मा कामरतिसन्थवं ।_*

*_अप्पमत्तो हि झायन्तो पप्पोति विपुलं सुखं ।।७।।_*

*_प्रमाद कार्यरत असु नका, काम-रति च्या संसर्गात राहु नका,_*

*_अप्रमादी ध्यानमग्न विपुल सुख मिळवितो.।।७।।_*

 

*_पमादं अप्पमादेन यदा नुदति पण्डितो।_*

*_पञ्ञापासादमारूय्ह असोको सोकिनिं पजं ।_*

*_पब्बतट्ठ व भुम्मट्ठो धीरो बाले अवेक्खति ।।८।।_*

*_जेव्हा ज्ञानी मानव प्रमादाला अप्रमादाने दूर घालवितो तेंव्हा तो,_*

*_प्रज्ञा-महालावर आरूढ शोकरहीत मानव शोकग्रस्ताला असे पाहतो, जसे_*

*_पर्वतावर उभा धीर माणूस जमिनीवरच्या अज्ञानी माणसाला पाहतो.।।८।।_*

 

*_अप्पमत्तो पमत्तेसु सुत्तेसू बहुजागरो ।_*

*_अबलस्सं'व सीघस्सो हित्वा याति सुमेधसो ।।९।।_*

*_अप्रमादी प्रमाद्याच्या, सदाजागृत झोपलेल्याच्या, असा पुढे जातो, जसा_*

*_वेगवान घोडा अशक्तताच्या पुढे जातो.।।९।।_*

 

*_अप्पमादेन मधवा देवानं सेट्ठतं गतो ।_*

*_अप्पमादं पसंसन्ति पमादो गरहितो सदा ।।१०।।_*

*_अप्रमादाने इन्द्र देवतांमध्ये श्रेष्ठ झाला, म्हणूनच_*

*_अप्रमाद्याची प्रशंसा होते, प्रमाद्याची निंदा होते.।।१०।।_*

 

*_अप्पमादरतो भिक्खु पमादे भयदस्सि वा ।_*

*_सञ्ञोजनं अणुं थुलं डहं अग्गीव गच्छति ।।११।।_*

*_प्रमादास घाबरणारा, अप्रमादी भिक्षु_*

*_लहान-मोठ्या बंधनांना अग्नी सारखे जाळतो.।।११।।_*

  

*_अप्पमादरतो भिक्खु पमादे भयदस्सि वा ।_*

*_अभब्बो परिहाणाय निब्बणस्सेव सन्तिके ।।१२।।_*

*_प्रमादास घाबरणार्या, अप्रमादी भिक्षुची_*

*_हानी होणे अशक्य, तो निर्वाणाच्या जवळ आहे.।।१२।।_*

 

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*प्रतिज्ञा आपण करूया*

*१) जीवसृष्टी आहे असीम; ती भवसागरपार नेण्याची*

*२) आपणांत दोष असंख्य; ते नष्ट करण्याची*

*३) आहेत सत्य अनंत, पूर्ण आकलण्याची*

*४) भगवान बुद्धांचा अतुल्य मार्ग, तो संपूर्ण साध्य करण्याची*

*डॉ बाबासाहेब आंबेडकर*

*बुद्ध आणि त्याचा धम्म*

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*_सर्व प्राणी सुखी होवोत, सर्वांचे कल्याण होवो, सर्वांना हिताचा मार्ग सापडो, कोणालाही दुःख न होवो, सर्वांचे मंङ्गल हो!!_*

*_साधु साधु साधु_*

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कोलित सुत्त

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