🌷 यवागू (खिचड़ी) का माहात्म्य 🌷
🙏 खिचड़ी खाने, दान करने के 10 दिव्य लाभ 🙏
एक समय भगवान वाराणसी में साढ़े बारह सौ के विशाल भिक्षु संघ के साथ विहार कर रहे थे। वह संघ के साथ अन्धकविन्द की ओर चारिका कर रहे थे।
बुद्ध प्रमुख भिक्खु संघ को भोजनदान कर पुण्यलाभ अर्जित करने के धम्म लोभ में अनेक समर्थ लोग तेल, नमक, चावल व अन्य खाद्य पदार्थ गाड़ियों में लाद कर संघ के पीछे-पीछे चल रहे थे कि जब उन्हें अवसर मिलेगा तो वह भी पावन संघ को भोजनदान करेंगे। एक श्रद्धालु उपासक भी इसी प्रत्याशा में पीछे-पीछे लगा था।
भगवान अपने संघ के साथ अन्धकविन्द पहुँच गये, मगर उस उपासक की बारी नहीं आयी। घर से दूर हुए उसे दो महीने हो चुके थे। वह श्रद्धालु उपासक अपने घर का अकेला व्यक्ति था जिस पर पूरे परिवार का दायित्व था। उसे घर की चिन्ता भी सताने लगी, काम-धाम की याद आने लगी।
उसने अपने मन में विचार किया- जिन लोगों को भोजन कराने का अवसर मिल पा रहा है, उन्हीं को परोसते देखूँ, जिस सामग्री का भोजन में अभाव हो वह व्यवस्था ही मैं कर दूँ, इससे मुझे बीच में ही भोजनदान का पुण्यलाभ मिल जाएगा।
यह सोच कर उसने अन्य श्रद्धालुओं का भोजन देखा और पाया कि भोजन में मिष्ठान्न नहीं है, यवागू अर्थात गीली खिचड़ी (दाल+चावल की पतली खिचड़ी) नहीं है। बड़े उत्साहित मन से भागता हुआ वह भगवान के उपस्थापक आनन्द के पास गया।
उनसे अपनी स्थिति स्पष्ट की: "बुद्ध प्रमुख भिक्खु संघ को भोजनदान देने की प्रत्याशा में दो महीने से संघ के पीछे-पीछे चल रहा हूँ, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आयी है। मैं घर का अकेला हूँ। काम-धाम छोड़ कर पुण्यलाभ की प्रत्याशा में भगवान के पीछे-पीछे चल रहा हूँ। पता नहीं मेरी बारी कब आएगी।
इसलिए मैंने सोचा कि जो लोग भोजन कराने का अवसर पा गये हैं, उन्हें परोसते देखूँ, भोजन में जिस खाद्य सामग्री का अभाव हो, वह व्यवस्था ही मैं कर दूँ, मैंने पाया कि भोजन में यवागू और मिष्ठान्न में मधुपिण्ड (लड्डू) कोई नहीं परोस रहा है। यदि गीली खिचड़ी और लड्डू तैयार कराऊं तो क्या भगवान स्वीकार करेंगे?"
आनन्द ने कहा- उपासक! भगवान से पूछ कर बताता हूँ... यह कह कर आनन्द ने सारा विवरण जाकर भगवान को बताया। करुणामय भगवान ने उस श्रद्धालु उपासक की परिस्थिति को समझा कि वह अपना काम-धाम छोड़ कर दो महीने से भोजनदान की प्रत्याशा में पीछे-पीछे लगा है।
भगवान ने आनन्द से कहा- आनन्द! उपासक से कहो कि वह तैयारी करे... आनन्द ने आकर उपासक से कहा- उपासक! भगवान ने अनुमति दे दी है। तुम जाओ, खिचड़ी और लड्डू तैयार कराओ। श्रद्धालु उपासक की श्रद्धा से आँखें छलक आयीं। आखिर दो महीने के बाद उसे भगवान को भोजनदान का अवसर मिल पाया था। उसकी आँखों से खुशी के आंसू छलक पड़े थे।
साढ़े बारह सौ के विशाल भिक्खु संघ के लिए उपासक ने प्रभूत मात्रा में यवागू और मधुपिण्ड तैयार कराए। संघ के भोजन समाप्ति से पूर्व उसने भगवान के सम्मुख एक थाल में खिचड़ी और लड्डू परोस कर स्वीकार करने की प्रार्थना की। उस समय ऐसा विनय था कि भोजन शुरू होने से पूर्व और समाप्त होने के बाद कुछ भी खाद्य स्वीकार करना निषिद्ध था।
उपासक द्वारा खिचड़ी और लड्डू परोसने पर संघ भगवान को देखने लगा। खिड़की को पालि भाषा में यवागू और लड्डू को मधुपिण्ड कहते हैं। यवागू वास्तव में गीली खिचड़ी होती है जिसे चिकित्सक प्रायः रोगियों को संस्तुत करते हैं। वास्तविक अर्थों में खिचड़ी खाद्य नहीं बल्कि पेय भोज्य है। उपासक द्वारा भगवान के सम्मुख यवागू और मधुपिण्ड परोसा गया।
भगवान ने यह दान स्वीकार किया और भिक्खुओं को भी अनुमति दी- भिक्खुओं! गृहण करो...। तब से संघ में भोजन समाप्ति के बाद भी पेय और मिष्ठान्न स्वीकार करने का विनय बना। भोजन की समाप्ति पर भगवान द्वारा थाली से हाथ खींच लेने तथा हाथ धोने के उपरान्त वह उपासक भगवान की धम्म देशना और अनुमोदन-आशीष की प्रत्याशा में एक ओर हाथ जोड़ कर बैठ गया।
उस दिन भगवान ने खिचड़ी की महिमा पर ही अपना उपदेश दिया। भगवान ने कहा: "उपासक! खिचड़ी के दस महात्म्य हैं। दस गुण हैं :-
1. खिचड़ी देने वाला आयु का दाता होता है।
2. खिचड़ी देने वाला वर्ण, रूप का दाता होता है।
3. खिचड़ी देने वाला सुख का दाता होता है।
4. खिचड़ी देने वाला बल का दाता होता है।
5. खिचड़ी देने वाला प्रतिभा का दाता होता है।
6. उसकी दी खिचड़ी से क्षुधा शान्त होती है।
7. उसकी दी खिचड़ी प्यास का शमन करती है।
8. उसकी दी खिचड़ी वायु को अनुकूल करती है।
9. खिचड़ी पेट को साफ करती है।
10. खिचड़ी न पचे को पचाती है।
"खिचड़ी के ये दस गुण हैं। जो संयमी, श्रद्धालु दूसरे के दिये भोजन करने वालों को समय पर सत्कारपूर्वक यवागू का दान करता है उसे ये दस फल मिलते हैं :-
1. आयु
2. रूप-वर्ण
3. सुख
4. बल
5. प्रतिभा उत्पन्न होती है।
6. क्षुधा शान्त होती है।
7. प्यास शान्त होती है।
8. वायु विकार नहीं होता, वायु अनुकूल रहती है।
9. पेट का शोधन होता है।
10. पाचन ठीक रहता है।"
भगवान ने यह भी कहा कि यह औषधि तुल्य है। दिव्य सुख की चाह रखने वाले और सौभाग्य की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को खिचड़ी का दाता होना चाहिए। इस प्रकार भगवान बुद्ध ने द्वारा खिचड़ी का माहात्म्य बताया ।
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भैषज्य-स्कंधक ।
विनय पीटक ।।
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✺भवतु सब्ब मंङ्गलं✺
✺भवतु सब्ब मंङ्गलं✺
✺भवतु सब्ब मंङ्गलं✺
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