Wednesday, 14 July 2021

चित्तवग्गो

 

*_धम्मपद_*

*_३ चित्तवग्गो_*

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                                       *_फन्दनं चपलं चित्तं दुरक्खं दुन्निवारयं ।_*

*_उजुं करोति मेधावी उसुकारो व तेजनं ।।१।।_*

 

*_स्पंदनकारी, चपळ चित्त रक्षण करण्यास कठीण, स्थिर करण्यास कठिण,_*

*_प्रज्ञावान ते सरळ करतो, जसे बाण-कार बाण करतो.।।१।।_*

                                                      

*_वारिजो'व थले खित्तो ओकमोकत उब्भतो ।_*

*_परिफन्दति'दं चित्तं मारधेय्यं पहातवे ।।२।।_*

 

*_पाण्यातून जमिनीवर फेकलेला मासा जसा तडफडतो,_*

*_भुलैयात अडकलेले चित्त मुक्त होण्यास तडफडते.।।२।।_*

 

 

*_दुन्निग्गहस्स लहुनो यत्थ कामनिपातिनो ।_*

*_चित्तस्स दमथो साधु चित्तं दन्त सुखावहं ।।३।।_*

 

*_निग्रह-कठिण, गतिमान, तसेच स्वैराचारी_*

*_चित्ताचे दमन / चित्त संयमित करणे चांगले, संयमित चित्त सुखावह.।।३।।_*

 

*_सुदुद्दसं सुनिपुणं यत्थकामनिपातिनं ।_*

*_चित्तं रक्खेय्य मेधावी, चित्तं गुतं सुखावहं ।।४।।_*

 

*_अदृश्य, अति-तरबेज, तसेच स्वैराचारी अशा_*

*_चित्ताचे, प्रज्ञावान मानव रक्षण करतो, संरक्षित चित्त सुखावह.।।४।।_*

 

 

*_दुरङगमं एकचरं असरीरं गुहासयं ।_*

*_ये चित्त सञ्ञमेस्सन्ति मोक्खन्ति मारबन्धना।।५।।_*

 

*_दूरगामी, एकटे राहणारे, निराकार, गुढ-आशयी,_*

*_अशा चित्ताला जे संयमित ठेवतात, तेच भुलैया बंधनातून मुक्त होतात.।।५।।_*

 

*_अनवट्ठितचित्तस्स सद्धम्मं अविजानतो ।_*

*_परिप्लवपसादस्स पञ्ञा न परिपुरति ।।६।।_*

 

*_अस्थिर चित्त मानव सुसिद्धान्त न जाणणारा,_*

*_चंचल मानव प्रज्ञावान होत नाही.।।६।।_*

 

*_अनवस्सुतचित्तस्स अनन्वाहतेचेतसो ।_*

*_पुञ्ञपापहीणस्स नत्थि जागरतो भयं ।।७।।_*

 

*_स्थिर चित्त, मल्लरहीत चित्त असणाऱ्या_*

*_पाप-पुण्य विहीन, जागृत, मानवास कशाचेही भय नसते. ।।७।।_*

 

*_कम्भूपमं कायमिमं विदित्वा नगरुपमं चित्तमिदं ठेपत्वा ।_*

*_योधेथ मारं पञ्ञायुधेन जितं च रक्खे अनिवेसनो सिया ।।८।।_*

 

*_शरीर मातीच्या घड्या सारखे जाणावे, तर चित्तं शहरा सारखे विशाल असावे_*

*_प्रज्ञा-हत्याराने भुलैयाशी युद्ध जिंकल्यावरही चित्तं रक्षावे, अनासक्त ठेवावे. ।।८।।_*

 

*_अचिरं वत'यं कायो पठविं अधिसेस्सति ।_*

*_खुद्धो अपेतविञ्ञाणो निरत्थं'व कलिङगरं ।।९।।_*

 

*_नश्वर असे हे शरीर जमिनीवर पडेल,_*

                                 *_तुच्छ, चेतनाशुन्य आणि निरर्थक ओंडक्यासारखे. ।।९।।_*         

 

                                        *_दिसो दिसं यन्त कयिरा वेरी वा पन वेरिनं ।_*          

*_मिच्छापणिहितं चित्तं पापियो'नं ततो करो ।।१०।।_*

 

*_शत्रु शत्रुचा वा वैरी वैऱ्याचा जितका करणार नाही,_*

*_वाईट संकल्पनायुक्त चित्त तितका दुष्प्रभाव निर्माण करते. ।।१०।।_*

 

*_न तं माता पिता कयिरा अञ्ञे वापि च ञातका ।_*

*_सम्मापणिहितं चित्तं सेय्यसो'नं ततो करे ।।११।।_*

 

*_माता-पिता वा इतर नातेवाईक जितका करणार नाही,_*

*_सुसंकल्पनायुक्त चित्त तितका श्रेष्टभाव निर्माण करते. ।।११।।_*

 

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                                                                 *प्रतिज्ञा आपण करूया*

*१) जीवसृष्टी आहे असीम; ती भवसागरपार नेण्याची*

*२) आपणांत दोष असंख्य; ते नष्ट करण्याची*

*३) आहेत सत्य अनंत, पूर्ण आकलण्याची*

*४) भगवान बुद्धांचा अतुल्य मार्ग, तो संपूर्ण साध्य करण्याची*


*डॉ बाबासाहेब आंबेडकर*

*बुद्ध आणि त्याचा धम्म*

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*_सर्व प्राणी सुखी होवोत, सर्वांचे कल्याण होवो, सर्वांना हिताचा मार्ग सापडो, कोणालाही दुःख न होवो, सर्वांचे मंङ्गल हो!!_*

*_साधु साधु साधु_*

*महेश कांबळे*

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कोलित सुत्त

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