।।आठ बोधिसत्व।।
आठ बोधिसत्व आठ घनिष्टतम पुत्र भी कहे जाते हैं। शाक्य मुनि बुद्ध के कल्प में ये मुख्य बोधिसत्व हैं।
'बोधिसत्व' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है 'बोधि का सार'। बोध का अर्थ होता है जाग्रति अथवा सम्बोधि अर्थात जो सम्बोधि के मार्ग पर है वह बोधिसत्व है।
जिसका भी बोधिचित्त जाग गया, प्राणिमात्र के हितार्थ बुद्धत्व अर्जित करने की इच्छा और करुणाममय मन, वह बोधिसत्व है।
आठ बोधिसत्व हैं:
1. मंजुश्री
2. वज्रपाणि
3. अवलोकितेश्वर
4. मैत्रेय
5. क्षितिगर्भ
6. आकाशगर्भ
7. सर्वनिवारणविष्कम्भिन
8. समन्तभद्र
मंजुश्री
समस्त बुद्धों के ज्ञान और प्रज्ञा के साकार रूप। पारम्परिक रूप से उनके दाहिने हाथ में तलवार और बाएं हाथ में ग्रन्थ होता है।
वज्रपाणि
वे बुद्धों की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और सामान्यत: वे हाथ में वज्र लिए हुए नील वर्ण में दर्शाए जाते हैं।
अवलोकितेश्वर
वे समस्त बुद्धों की वाणी के प्रतिनिधि तथा करुणा के साकार रूप हैं। उनको प्राय: कमल लिए हुए श्वेत वर्ण में दर्शाया दाता है।
मैत्रेय
शाक्य मुनि बुद्ध के बाद वे भावी बुद्ध होंगे। उनको प्राय: श्वेत-पीत वर्ण में केसरिया रंग का चंवर लिए हुए दर्शाया जाता है जो नकारात्मक भावनाओं के ज्वर को उतार देता है।
क्षितिगर्भ
जब तक समस्त नरक रिक्त नहीं हो जाते तब तक बुद्धत्व उपलब्ध नहीं करूँगा, ऐसी प्रतिज्ञा लिए हुए उनकी सारी दृष्टि नरक में कष्ट भोग रहे लोगों पर केन्द्रित रहती है। दाहिने हाथ में दण्ड लिए हुए उन्हें प्राय: श्वेत वर्ण में दर्शाया जाता है और बाएं हाथ में मणि जो कि प्रज्ञा का प्रतीक है।
आकाशगर्भ
इस नाम का अर्थ होता है 'आकाश का नाभिक'। वे आकाश तत्व और मंजुश्री की तरह वे भी प्रज्ञा व ज्ञान के साथ संलग्न हैं। नकारात्मक वृत्तियों को ध्वस्त कर देने के लिए हाथ में तलवार लिए उन्हें प्राय: नील, पीत अथवा हरित वर्ण में दर्शाया जाता है।
सर्वनिवारणविष्कम्भिन
समस्त मार्ग अवरोधों को ध्वस्त कर देने वाले हैं सर्वनिवारणविष्कम्भिन। निवारण से तात्पर्य है पांच क्लेषों से मुक्ति- इच्छा, द्वेष, प्रमाद, अविद्या अथवा संदेह तथा भ्रम यानी विचिकित्सा। वे अमोघसिद्धि बुद्ध के सेवक हैं, जो कि कर्म परिवार में उत्तर दिशा के पालक हैं।
नीलमणि जैसे वर्ण में वे कमल पर चन्द्र के साथ हैं। सूत्रों में वे वाराणसी में अवलोकितेश्वर के साथ उनकी स्तुति करते हुए पाए जाते हैं।
उन्हें प्राय: रक्त-पीत वर्ण में हाथ में धम्मचक्र लिए दर्शाया जाता है।
समन्तभद्र
वे अपने व्यापक वरदानों के लिए प्रसिद्ध हैं। वे प्राय: कर्णछेदी रत्न के साथ रक्त-हरित वर्ण में दर्शाए जाते हैं जो इस बात का संकेत है कि वे प्राणिमात्र की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।
आठों बोधिसत्व बड़ी सुन्दरता के साथ निम्न प्रतीक चिन्हों को धारण किये दर्शाए जाते हैं:
· मजुश्री - नीलोत्पल
· वज्रपाणि - वज्र
· अवलोकितेश्वर - श्वेतपद्म
· मैत्रेय - नागवृक्ष
· क्षितिगर्भ- रत्न
· सर्वनिवारणविष्कम्भिन - चन्द्र
· आकाशगर्भ- प्रज्जवलित तलवार
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