आओ, 🌷 धम्म 🌷 समझे 🙏🙏
धम्म वंदना : स्वाक्खातो भगवता धम्मो सन्दिठ्ठिको अकालिको एहिपस्सिको ओपनेय्यिको पच्चतं वेदितब्बो विञ्ञूहीति ।।
[ धम्म के गुणों को श्रद्धा पुर्ण चित्त से स्मरण करते हुए अपने आपको को धर्म (धम्म) मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते रहना । ]
धम्म के 6 गुण:
स्वाक्खातो भगवता धम्मो :
1) स्वाक्खातो = सुआख्यात = साधे और आसान शब्दों में उदाहरणों के साथ अच्छी प्रकार समझाया गया हुआ, ताकि सभी लोग आसानी से समझ सकें ।
भगवता = भगवान का
धम्मो = धर्म, धम्म, शिक्षा ।
2) सन्दिठ्ठिको = सांदृष्टीक = सम्यक दृष्टि दायक = सम्यक (सही, वैज्ञानिक) दृष्टि देने वाला ।
सही क्या है और गलत क्या है ?
धम्म क्या है और अधम्म क्या है ?
श्रद्धा क्या है और अंधश्रद्धा क्या है ?
ज्ञान क्या है और अज्ञान क्या है ?
इस तरह की सभी बातों का अनुभूति जन्य ज्ञान ।
सन्दिठ्ठिको = धम्म के बारे में, बुद्ध की शिक्षा के बारे में अनुभूति जन्य ज्ञान ।
सन्दिठ्ठिको = सम्यक दृष्टि = प्रज्ञा (प्रत्यक्ष ज्ञान)
सम्यक = सही, योग्य, उचित, शुद्ध, परिशुद्ध,
सम्मा दिठ्ठी का एक और महत्वपूर्ण अर्थ : चार आर्य सत्यों का अनुभूति जन्य ज्ञान ।
"दुःख" विषयक ज्ञान,
"दुःख समुदाय" विषयक ज्ञान,
"दुःख निरोध" विषयक ज्ञान,
"दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा (मार्ग)" विषयक ज्ञान।
3) अकालिको = तत्काल फलदायक ।
मृत्यु के बाद तो फल मिलेगा ही, लेकिन अभी इसी वक्त भी फल मिलता है । जितना जितना धर्म/ धम्म के मार्ग पर आगे बढ़ते रहेंगे, धम्म अभ्यास करते रहेंगे, उतना उतना फल तुरंत मिलता है ।
4) एहिपस्सिको = आओ और देखो कहलाने योग्य ।
एहि = आओ ।
पस्सिको = देखो, समझो, जानो, अनुभव करो, ।
5) ओपनेय्यिको = उपर की ओर, आगे की ओर, निर्वाण की ओर ले जाने वाला ।
[ धम्म मार्ग पर जरा सी भी प्रगति किये हुए व्यक्ति की दुर्गति असंभव है । अरहंत अवस्था प्राप्त होने तक मनुष्य लोक और देव-लोकों में ही जन्म होते रहेगा, चाहे जितना लंबा समय लगें, चाहे जितने (लाखों-करोड़ों) जन्म लगें । ]
6) पच्चतं वेदितब्बो विञ्ञूहीति = विद्वानों द्वारा प्रत्यक्ष अनुभूति के स्तर पर जानने योग्य ।
कोई कहता, इसलिए विश्वास मत रखो, स्वयं अपने अनुभूति से जानो ।
*धम्म* शब्द के अनेक अर्थ है ।
धम्म = तथागत सम्यक संबुद्ध की शिक्षा = अष्टांगीक मार्ग = दुःख मुक्ति का मार्ग = जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति का मार्ग ।
धम्म = धर्म ।
धम्म = निसर्ग के नियम ।
धम्म = कुदरत का कानून ।
धम्म = गुण, धर्म, स्वभाव, लक्षण ।
धम्म = चित्त ने जो धारण किया, उसे भी धम्म (धर्म ) कहते हैं ।
कुछ और भी अर्थ है, पर प्रमुख अर्थ : तथागत भगवान सम्यक संबुद्ध की शिक्षा = अष्टांगीक मार्ग, जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति का मार्ग ।
*अष्टांगीक मार्ग* = आठ अंगों वाला मार्ग = आठ अंगों से युक्त मार्ग ।
1) सम्मा दिठ्ठी = सम्यक दृष्टि ।
2) सम्मा संकप्पो = सम्यक संकल्प ।
3) सम्मा वाचा = सम्यक वाणी ।
4) सम्मा कम्मन्तो = सम्यक कर्मान्त ।
5) सम्मा आजिवो = सम्यक आजिविका ।
6) सम्मा वायामो = सम्यक व्यायाम (परिश्रम) ।
7) सम्मा सति = सम्यक स्मृति ।
8) सम्मा समाधि = सम्यक समाधि ।
इन आठ अंगों में से :
सम्मा वाचा, सम्मा कम्मन्तो और सम्मा आजिवो ये तीन अंग शील के अंतर्गत आते हैं ।
सम्मा वायामो, सम्मा सति और सम्मा समाधि ये तीन अंग समाधि के अंतर्गत आते हैं ।
और
सम्मा दिठ्ठी और सम्मा संकप्पो ये दो अंग प्रज्ञा के अंतर्गत आते हैं ।
1) सम्मादिठ्ठी / सम्यक दृष्टि का अर्थ पहले ही बताया गया है ।
2) सम्मा संकप्पो = सम्यक संकल्प = निष्क्रमण (संसार त्याग) का संकल्प, द्वेष, द्रोह न करने का संकल्प, विहिंसा न करने का संकल्प, पांच शील दृढ़ता से पालन करने का संकल्प, धम्माभ्यास & धम्माचरण का संकल्प, दस पारमीताएं पुर्ण करने का संकल्प, लोगों को धम्म मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने का संकल्प, भिक्षु संघ की सेवा का संकल्प, माता-पिता & परिजनों की सेवा का संकल्प ।
व अन्य सभी धर्मकार्य (धम्मकार्य), उचित कार्य करने का संकल्प ।
3) सम्मा वाचा = सम्यक वाणी = वाणी के अकुशल कर्मों से विरत रहना, जैसे:
झूठ बोलने से विरत रहना,
चुगली करने से विरत रहना,
कठोर (गाली) वचन बोलने से विरत रहना ।
अनावश्यक व्यर्थ बकवास करने से विरत रहना इत्यादि ।
4) सम्मा कम्मन्तो = सम्यक कर्मान्त = शरीर के अकुशल कर्मों से विरत रहना, जैसे:
हत्या करने से विरत रहना,
चोरी करने से विरत रहना,
व्याभीचार करने से विरत रहना इत्यादि ।
5) सम्मा आजिवो = सम्यक आजिविका = हमारी आजिविका (Source of Income) शुद्ध हो ।
जैसे:
मांस का व्यापार न करें ।
मादक पदार्थों का व्यापार न करें ।
शस्त्रों का व्यापार न करें ।
जहर का व्यापार न करें ।
कसाइ को प्राणी बेचने का व्यवसाय न करें ।
भ्रष्टाचार न करें ।
मिलावट का व्यापार न करें ।
या अन्य किसी भी गलत प्रकार से धन न कमाएं ।
हमारा व्यवसाय ऐसा हो की, जिससे हमारा, जनता का एवं देश का भला हो, कल्याण हो ।
6) सम्मा वायामो = सम्यक व्यायाम/ सम्यक परिश्रम।
चार प्रकार के सम्यक व्यायाम / सम्यक परिश्रम है:
अपने आपको/अपने चित्त को जांच के देखें और
1) अपने चित्त में जो दुर्गूण है, उन्हें दुर करने के लिए, निकालने के लिए प्रयास करें ।
2) अपने चित्त में जो दुर्गूण नहीं है, वे भविष्य में भी न आएं, इसके लिए प्रयत्न करें ।
3) अपने चित्त में जो सद्गूण है, उन्हें रोके रखें और उनका संवर्धन करने के लिए प्रयास करें ।
4) अपने चित्त में जो सद्गूण नहीं है, उन्हें लाने के लिए प्रयास करें ।
दुर्गूण = अकुशल धर्म ।
सद्गूण = कुशल धर्म ।
7) सम्मा सति = सम्यक स्मृति :
सति = स्मृति = सजगता ।
सम्मा सति = सम्यक स्मृति = संप्रज्ञान = शरीर और चित्त स्कंध में प्रति-क्षण जो कुछ हो रहा है, उसकी जानकारी, और जानकारी के आधार पर अनित्यबोध, और अनित्यबोध के आधार पर समता ।
सम्मा सति = सम्यक स्मृति = कायानुपश्यना, वेदनानुपश्यना, चित्तानुपश्यना, धमानुपश्यना ।
8) सम्मा समाधि = चित्त की सम्यक एकाग्रता ।
सम्यक समाधि = कुशल चित्त की एकाग्रता = राग, द्वेष और मोह विहिन चित्त की एकाग्रता ।
सम्यक समाधि = प्रथम, द्वितीय, तृतीय & चतुर्थ ध्यान में परिपक्वता ।
सम्यक समाधि = कोई साधक, राग, द्वेष, आलस, बेचैनी और शंकाएं इन पांच अकुशल बातों से अलग होकर वितर्क, विचार, प्रीति, सुख और एकाग्रता इन पांच अंगों से युक्त *प्रथम ध्यान* को प्राप्त कर विहार करता है ।
वितर्क, विचार के शांत होने पर प्रीति, सुख और एकाग्रता इन तीन अंगों से युक्त *द्वितीय ध्यान* को प्राप्त कर विहार करता है ।
प्रीति के भी शांत होने पर सुख और एकाग्रता इन दो अंगों से युक्त *तृतीय ध्यान* को प्राप्त कर विहार करता है ।
सुख के भी शांत होने पर केवल चित्त की एकाग्रता वाले *चतुर्थ ध्यान* को प्राप्त कर विहार करता है ।
वितर्क = ध्यान का आलंबन ।
विचार = आलंबन में चित्त का विचरण करना ।
प्रीति = चित्त में आनंद की लहरें ।
सुख = शरीर पर पुलक रोमांच ।
एकाग्रता = चित्त की एकाग्रता की चरम सीमा ।
आओ, धम्म के इस महान मार्ग का अनुसरण कर इसे अपने जीवन में उतारे एवं शुद्ध धम्माचरण करें ।
इसी में हमारे साथ-साथ औरों का भी मंगल समाया हुआ है, कल्याण समाया हुआ है।
भवतु सब्ब मंङ्गलं !!
🙏🙏🙏
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